जैजैपुर के रहीम को मदद की दरकार
जांजगीर। हिंदी साहित्य के भक्तिकाल में रहीम और रसखान ऐसे दो कवि हुए हैं जिन्होंने 15 वी शताब्दी में हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रयास किया । उक्त दोनों कवियों ने बाल कृष्ण पर अनेक कविताएं लिखी कृषि उपज मंडी में सहायक ग्रेड 3 के पद पर काम करने वाले अब्दुल गफ्फार खान को अगर हम जैजैपुर का रहीम कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी । अब्दुल गफ्फार खान को जैजैपुर के शासकीय विभागों में काम करने वाला हर कर्मचारी और अधिकारी पहचानता है कारण यह है कि जैजैपुर और उसके आगे हसौद तक सफर करने वाले अधिकारी और कर्मचारी बाराद्वार में ट्रेन से उतर कर बस से जैजैपुर हसौद सफर करते हैं और बाराद्वार से हसौद तक पड़ने वाले विभिन्न गांवों में छोटे बड़े विभागों के अधिकारी और कर्मचारी साथ साथ अप डाउन करते हैं । पिछले कई वर्षों से ये अधिकारी और कर्मचारी एक साथ ट्रेन और बस से आते जाते हैं और बहुत सालों से साथ सफर करते-करते लगभग सभी अधिकारी और कर्मचारी एक दूसरे को पहचान चुके हैं । इन अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच में कृषि उपज मंडी में काम करने वाले चांपा के अब्दुल गफ्फार खान को सभी जानते हैं । सच कहें तो जैजैपुर में अब्दूल खान हिंदू मुस्लिम एकता के मिसाल है । अब्दुल खान पर हर अधिकारी और कर्मचारी जाति और धर्म से परे दिल से स्नेह रखता है और सम्मान भी करता है क्योंकि अब्दुल खान ने भी हर किसी को सम्मान दिया हर किसी को अपने स्तर पर मदद की है । किसी ने उन्हें जय श्रीराम कहकर अभिवादन किया तो उनकी ओर से नमस्ते नहीं बल्कि जयश्री राम ही अभिवादन प्रतिउत्तर में मिला , जय जोहार के बदले जय जोहार और प्रेम के बदले प्रेम , सम्मान और स्नेह उन्होंने दिया लेकिन आज अब्दुल खान अपोलो अस्पताल के बिस्तर पड़े-पड़े ह्रदय की बीमारी से जूझ रहे हैं । खैर बीमारी में भला किसकी चलेगी लेकिन अत्यंत दुखद कि 15 दिनों में छुट्टी हो जाने की जगह पर वे पिछले 1 महीने से अपोलो अस्पताल में पड़े बीमारी और अपोलो अस्पताल प्रबंधन के कर्मचारियों की बातों से जूझ रहे हैं । सबसे विडंबना की बात है वर्षों तक एक दूसरे के साथ काम करते हुए ये कर्मचारी स्वयं को परिवार कहते तो है लेकिन इसी परिवार का एक सदस्य यदि बीमार पड़ जाता है या असहाय हो जाये तो मदद करने के बजाय नियमों का हवाला देते हैं । इस मामले में वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दिए गए मदद करने के निर्देशों को भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है और यही कर्मचारी अधिकारी शासन की किसी योजना का पलीता लगाने में न नियमों की परवाह करते हैं और न ही कलम फंसाने से डरते हैं । उस समय उनकी नैतिकता और शासन का भय ऐसे हवा होता है जैसे गर्म तवे में गिरी पानी की बूंद । बड़ी अजीब सी फितरत हो गयी है हमारी कि हम किसी की मदद करने के लिए नियमों की बाल से अवरोधों की खाल निकाल लेते हैं लेकिन जैजैपुर ही नहीं तमाम कृषि मंडियों सहित शासन के सारे विभाग इस तरह की मदद और नैतिक दायित्वों को निभाने के समय राजा हरिश्चंद्र का वह रुप धारण करते हैं जब चांडाल बने हरिश्चंद्र के सामने उनकी धर्मपत्नी तारामती अपने ही बच्चे का शव लेकर आती है और राजा हरिश्चंद्र निर्विकार भाव से उनसे भी श्मशान घाट में प्रवेश का शुल्क लेते हैं
फिलहाल जैजैपुर के रहीम अब्दुल खान को अपोलो अस्पताल में एक-एक दिन एक-एक साल की तरह लग रहा है और उनकी मदद करने वाले वरिष्ठ भी कृषि उपज मंडी सचिव राजेंद्र ध्रुव के नियमों के सामने बौने साबित हो जा रहे हैं । देखना शेष है कि अब क्या होगा और वे जब स्वस्थ होकर आएंगे तो क्या वे पहले की खुशमिजाज , निष्पाप और मददगार रह पायेंगे क्योंकि इस क्रूर दुनिया और उसके नियमों ने उन्हें जीवन का एक नया पाठ सीखाया है ।