Raipur/Rajnandgaon.रायपुर/राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता व्यापार में हुए 5.13 करोड़ रुपए के घोटाले और 94 लाख रुपए के तेंदूपत्ता पार करने के मुख्य आरोपी ठेकेदार सुधीर कुमार मानेक को आज राजनांदगांव कोतवाली पुलिस ने गिरफ्तार किया, लेकिन चौंकाने वाले घटनाक्रम में दो जिलों के पुलिस अधीक्षकों (SP) के दबाव में उसे थाने से ही रिहा कर दिया गया। घटना के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली और पुलिस-वन विभाग की मिलीभगत पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
गिरफ्तारी से कोर्ट पेशी तक सब तय था, फिर आया SP का 'फोन'
सूत्रों के अनुसार, राजनांदगांव कोतवाली पुलिस ने शनिवार सुबह प्रकरण क्रमांक 0305/2025 के तहत मानेक को गिरफ्तार किया था। यह मामला IPC की धारा 316(2) (आपराधिक विश्वासघात), 316(5) (धोखाधड़ी) और धारा 61(2) (आपराधिक साजिश) के तहत दर्ज है। थानेदार रामेंद्र सिंह ने गिरफ्तारी के बाद आरोपी को कोर्ट में पेश करने की तैयारी कर ली थी, लेकिन तभी दो जिलों के SP ने फोन कर मानेक को तत्काल छोड़ने का दबाव बनाया। एक ऑडियो क्लिप सामने आई है, जिसमें थानेदार यह स्वीकार करता हुआ सुना जा सकता है कि "SP साब का फोन आया, इसलिए छोड़ दिया गया।"
मानेक पर क्या हैं आरोप?
सुधीर कुमार मानेक पर बीजापुर और राजनांदगांव जिलों में तेंदूपत्ता खरीदी में 5.13 करोड़ रुपए के गबन का आरोप है। इसके अलावा 94 लाख रुपए का तेंदूपत्ता गोदाम से गायब करने का भी मामला सामने आया है। वन विभाग ने इसकी रिपोर्ट दर्ज करवाई थी और प्रकरण की जांच के बाद पुलिस ने मानेक को गिरफ्तार किया था। बताया जा रहा है कि मानेक की अग्रिम जमानत याचिका छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में लंबित है, जिसकी सुनवाई आने वाले दिनों में होनी है।
गंभीर सवाल: VIP आरोपी को ‘बचाया’ क्यों?
जब आम नागरिकों को मामूली चोरी के आरोप में भी जेल भेज दिया जाता है, तब 5 करोड़ से अधिक की सरकारी संपत्ति में गबन के आरोपी को VIP ट्रीटमेंट क्यों? स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि दो जिलों के SP जैसे वरिष्ठ अधिकारी किस आधार पर एक आर्थिक अपराध के आरोपी को बचा रहे हैं। इससे पहले भी मानेक पर आरोप लगा था कि उसने अपने ही तीन कर्मचारियों पर नक्सली लेवी का झूठा केस दर्ज करवाकर उन्हें जेल भिजवा दिया, जिससे वे खिलाफ गवाही न दे सकें। उस मामले में भी पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में थी।
वन विभाग भी सवालों के घेरे में
इस पूरे मामले में वन विभाग की चुप्पी भी संदेहास्पद है। तेंदूपत्ता घोटाले की मुख्य शिकायत वन विभाग द्वारा दर्ज कराई गई थी, लेकिन जब आरोपी को रिहा किया गया तो किसी अधिकारी ने आपत्ति दर्ज नहीं की। सूत्र बताते हैं कि वन विभाग और मानेक के संबंध बहुत पुराने और गहरे हैं, जिसके चलते अब भी विभाग निष्क्रिय बना हुआ है।